ग्राम पोस्ट- बनकटा मिश्रा, तहसील- भाटपार रानी, देवरिया, उ0प्र0 के किसान डाॅ0 नरेन्द्र नाथ मिश्रा, (उम्र-67 वर्ष), मदन मोहन मालवीय पी0 जी0 कालेज भाटपार रानी से सेवानिवृत होने के पश्चात अपनी खेती को आगे बढ़ाने की योजना बनाई। तत्पश्चात् खेती कार्य में जुट गये इसी दौरान डाॅ0 मिश्रा ने मक्का, धान, गेहॅू एवं अरहर की खेती प्रारम्भ की परन्तु उनको सफलता नही मिली और खेती में घाटे को देखते हुए अन्य किसानों की भाॅति खेती-बाड़ी से छुटकारा पाने का मन बना लिया। इसी दौरान सन् 2009 में कृषि विज्ञान केन्द्र, मल्हना, देवरिया की स्थापना हुई और निदेशक महोदय भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों की तैनाती की गई। इन विशेषज्ञों का संम्पर्क डाॅ0 नरेन्द्र मिश्रा से हुआ। डाॅ0 मिश्रा से सम्पर्क के समय उन्होने खेती करने से साफ-साफ मना कर दिया। बार-बार समझाने पर भी तैयार नही हुए। जब उनके खेत पर मक्का का अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन लगाने के लिए कहा गया तो डाॅ0 मिश्रा उदास मन से अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन लगाने के लिए तैयार हुए। डाॅ मिश्रा से बात-चीत कर पता लगाया की खेती से छुटकारा पाने की वजह क्या है। तब उन्होने बताया की इस क्षेत्र में लाख कोशिशों के बावजुद मक्का की फसल को नील गाय (वनरोज) के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है एवं किसानों को तकनिक जानकारी का अभाव होना बताया। कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा अन्य गाॅव के साथ-साथ इस गाॅव को भी गोद लिया गया। कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों व सीसा परियोजना ने मिल कर डाॅ मिश्रा के खेत पर खरीफ मक्का का अंग्रिम पंक्ति प्रदर्शन लगाया गया। इस प्रदर्शन की खास बात ये रही की मक्का की बुवाई रेज बेड प्लान्टर से कराई गई। जिसकी संपूर्ण तकनिक जानकारी कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों द्वारा एवं बीज व मशीन की व्यवस्था सीसा परियोजन के तहत कराई गई। मेड़ पर बुवाई के दौरान ग्रामिणों ने बताया की इस विधि द्वारा
हमारे क्षेत्र में पहली बार बुवाई की जा रही है। धीरे-धीरे समय निकलता गया और कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञ डाॅ मिश्रा व अन्य किसानों से लगातार संम्पर्क बनाये रहे। समय-समय पर आवश्यक तकनिक जानकारिया किसानों तक पहुॅचाते रहे। जब फसल पक कर तैयार हो गई तो स्वयं डाॅ0 मिश्रा व गाॅव के किसानों ने बताया की आपके द्वारा लगाई गयी मक्का की फसल अच्छी है। इसके पीछे किसानों के द्वारा निम्न तर्क दिये गये।
मेड़ पर बुवाई करने से नील गाय (वनरोज) का आतंक कम होता है क्योकि मेड़ व नाली बनी होने के कारण चलने-फिरने में नील गाय को काफी परेशानीयों का सामना करना पड़ता है। जिससे उसको शत्रु द्वारा आक्रमण करने का डर बना रहता है। इसी कारण नील गाय खेत के अन्दर घुस नही पाती है। इसीलिए फसल का नील गाय से बचाव हो जाता है।
फसल अच्छी होने के कारण किसानों का कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों पर विश्वास होने लगा और किसान लगातार संम्पर्क बनायें रहें। इसी दौरान कई बार अलग-अलग विषयों पर किसानों के लिए प्रशिक्षण का भी आयोजन किया गया। मक्का की फसल की कटाई होने के पश्चात डाॅ मिश्रा के सामने मड़ाई के लिए श्रमिको की समस्या उत्पन्न हो गई। डाॅ मिश्रा को सुझाव दिया गया कि मक्का की मड़ाई मशीन के द्वारा भी की जा सकती है। यदि इस क्षत्र में आस-पास मशीन उपलब्ध हो तो मड़ाई में खर्च कम लगने के साथ-साथ समय की बचत होगी। तब उन्होने पता लगाया और बिहार से अपने परिचित के यहाॅ से मक्का मड़ाई की मशीन मंगवाकर मक्के की मडाई कराई गई। पैदावार को देखकर डाॅ मिश्रा एवं अपने व अन्य गाॅवों के किसानों का आत्मविश्वास आसमान पर था। क्योकि जहाॅ पर नील गायों के आतंक एवं तकनिक जानकारी के अभाव में किसानों को खती में घाटा उठाना पड़ रहा था वही लगभग 46 कु0/हे0 उपज प्राप्त की गई थी।
औसत पैदावार- 51.75 कु/हे
जहाॅ पर किसान नील गायों व तकनिक जानकारी के अभाव में परेशान थे वही पर इस सफलता को देख आस-पास के गाॅवों के किसान भी खेती करने के लिए प्रेरित हुए। यह सफलता विशेषज्ञों व डाॅ मिश्रा के जीवंत संम्पर्क व विश्वास के कारण संभव हो सकी।नील गायों के आतंक से किसानों द्वारा छोड़ी गई मक्के की खेती सन् 2010 से बड़े पैमाने पर बनकटा मिश्र के साथ आस-पास गाॅवों के किसानों द्वारा मक्का उत्पादन किया जा रहा है। इस वर्ष डाॅ0 मिश्रा को मक्के की अच्छी प्रजाति उपलब्ध नही होन पर उन्होने हैदराबाद से अच्दी प्रजाति का बीज मगवाया और लगभग 6 बीघा में मक्का की ख्ेाती कर रखी है।
डाॅ. मिश्रा अपने गाॅव के साथ-साथ अन्य गाॅवों के किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोंत बन गये है।
वर्ष | पैदावार (कु/हे) | कुल लागत (रु में) | कुल आय (रु में) | शुद्ध लाभ (रु में) |
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2010 | 46 | 25380 | 48750 | 23370 |
2011 | 48 | 26650 | 51910 | 25260 |
2012 | 53 | 27500 | 56800 | 29300 |
2013 | 60 | 30210 | 63284 | 33074 |
महिलाओं एवं बच्चो मे कुपोषण को ध्यान में रखते हुए संतुलित दैनिक आहार की व्यवस्था हेतु पोशण वाटिका की भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित प्रारुप को परिक्षण के लिए 20 किसानो एवं कृषक महिलाओं के प्रक्षेत्र पर लगाया गया जिसे देखकर गांव के विभिन्न किसानो एवं कृषक महिलाओं द्वारा अपने घर के आसपास के खाली जमीनों में सब्जी उगायी जा रही है एवं उसका उपयोग दैनिक आहार में की जा रही है। इस प्रकार पोषण वाटिका की संख्या में निरंतर वृद्धि होते जा रही है।
विगत वर्षो में प्याज की आसमान छूती कीमतों को ध्यान में रख कर कृषि विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों द्वारा देवरिया जिले में खरीफ प्याज के उत्पादन पर सर्वे किया गया। एंव सर्वे में विशेषज्ञों ने पाया कि हमारेे जिले में खरीफ प्याज का उत्पादन नही के बराबर है। यहाॅ कि जलवायु इसके योग्य है। यदि खरीफ प्याज का जिले के किसानांे के बीच परिचय कराया जाये तो किसानों की आर्थिक स्थिति को उपर उठाया जा सकता हैं। इन सब को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र मल्हना, देवरिया के विशेषज्ञो द्वारा कई गाॅवों के किसानों से जा कर खरीफ प्याज के बारे में सम्र्पक किया गया। किसानों ने खरीफ प्याज को लगाने से मना कर दिया। परन्तु विशेषज्ञों ने हार नही मानी और दुसरे गाॅवों के किसानों से सम्र्पक किया गया। इस बार 09 गाॅवों के (कोडरा, दनउर, पिपराबेनी, बनरही, मझौलीराज, परसीया चन्दवक, ततायर बुर्जग एंव मल्हना) 15 किसानों को तैयार किया गया।
चयनित किसानांे को खरीफ 2014 में प्याज की उन्नतशील प्रजाती एग्रिफाउन्ड डार्क रेड का 0.5 हैक्टेयर क्षेत्रफल में अग्रिम पंक्ति प्रर्दशन के लिए बीज दिया गया। किसानांे को बीज वितरण करने से पूर्व खरीफ प्याज उत्पादन की उन्नत तकनीक पर प्रशिक्षण कराए गये। प्याज लगाने के पश्चात विशेषज्ञों के द्वारा किसानों से लगातार सम्र्पक बनाए रखा। समय-समय पर किसानों को आवश्यक जानकारिया दी गई। ताकि किसी प्रकार की समस्या नही हो।
फसल की खुदाई के समय प्रक्षैत्र दिवस का आयोजन किया गया। प्रक्षैत्र दिवस के समय किसान प्याज कि पैदावार देख कर काफी उत्साहित थे। क्यांेकि औसत पैदावार 254.1 कु.प्रति हैक्टेयर प्राप्त हुई। खरीफ प्याज की बाजार मे अच्छी कीमत प्राप्त होने के कारण यह किसानों की आय का अच्छा óोत है।
फसल | प्रर्दशन के लिए तकनीक | प्रजाती | किसानों कि संख्या | क्षेत्रफल (हे.) | अधिकत्म पैदावार (कु/हे) | न्यूनतम पैदावार (कु/हे) | औसत पैदावार (कु/हे) |
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प्याज | उन्नत प्रजाति का प्रदर्शन | एग्रीफाउन्ड डार्क रेड | 15 | 0 - 5 | 267 - 6 | 242 - 7 | 254 - 1 |
कुल लागत (रू.) | कुल आय (रू.) | शुद्व लाभ (रू.) | लाभ: लागत |
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72630 | 254000 | 181370 | 3 - 4%1 |
वर्ष | जिले में शुन्य जुताई विधि के अन्र्तगत क्षेत्रफल (हे.) | गाॅवों की संख्या | अग्रिम पंक्ति प्रर्दशन के अन्र्तगत क्षेत्रफल (हे.) | किसानों की संख्या | गाॅवों की संख्या | मशिनों की संख्या | औसत उपज (कु./हेक्टयर) |
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2009-2010 | 0 | 0 | 6 | 10 | 03 | 02* | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 36.4 स्थानिय तकनीक : 32.8 |
2010-2011 | 44.6 | 07 | 15.76 | 44 | 08 | 08 | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 39.8 स्थानिय तकनीक : 33.6 |
2011-2012 | 120.8 | 16 | 8.6 | 19 | 05 | 14 | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 39.65 स्थानिय तकनीक : 38.5 |
2012-2013 | 276.2 | 28 | 11.5 | 32 | 08 | 22 | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 40.3 स्थानिय तकनीक : 38.1 |
2013-2014 | 390.8 | 34 | 14.68 | 39 | 06 | 35 | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 44.8 स्थानिय तकनीक : 37.4 |
2014-2015 | 484.8 | 46 | 09 | 27 | 08 | 41 | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : स्थानिय तकनीक : |
’दोनो जीरो टिल मशीने पुरानी व खराब पड़ी हुई थी।
वर्ष | अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का आथर््िाक विष्लेषण (रूपये/हे) | स्थानिय तकनीक का आथर््िाक विशलेषण (रूपये/हे) | लाभ: लागत |
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2009-2010 | कुल लागत : 20422 कुल आय : 37200 शुद्ध लाभ : 16778 |
कुल लागत : 24892 कुल आय : 34300 शुद्ध लाभ : 9408 |
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 1.8:1 स्थानिय तकनीक : 1.3:1 |
2010-2011 | कुल लागत : 22400 कुल आय : 40795 शुद्ध लाभ : 18395 |
कुल लागत : 26100 कुल आय : 34440 शुद्ध लाभ : 8340 |
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 1.8:1 स्थानिय तकनीक : 1.3:1 |
2011-2012 | कुल लागत : 24620 कुल आय : 39500 शुद्ध लाभ : 14880 |
कुल लागत : 29120 कुल आय : 38500 शुद्ध लाभ : 9380 |
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 1.6:1 स्थानिय तकनीक : 1.3:1 |
2012-2013 | कुल लागत : 20345 कुल आय : 55510 शुद्ध लाभ : 35165 |
कुल लागत : 26105 कुल आय : 53900 शुद्ध लाभ : 27795 |
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 2.7:1 स्थानिय तकनीक : 2:1 |
2003-2014 | कुल लागत : 26240 कुल आय : 73200 शुद्ध लाभ : 46960 |
कुल लागत : 31220 कुल आय : 62100 शुद्ध लाभ : 30900 |
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : 2.7:1 स्थानिय तकनीक : 1.9:1 |
2014-2015 | कुल लागत : कुल आय : शुद्ध लाभ : |
कुल लागत : कुल आय : शुद्ध लाभ : |
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन : स्थानिय तकनीक : |
शुन्य जुताई विधि द्वारा गेहूॅ की बुवाई को बढावा देने में कृषि विज्ञान केन्द्र के साथ-साथ सीसा परियोजना की भी महत्वपूर्व भागीदारी है।
श्री रमाशंकर तिवारी, पिता श्री (स्व0) राम नारायन शर्मा ग्राम - भड़सर, पोस्ट - टिकमपार, बनकटा ब्लाॅक, जिला - देवरिया के निवासी हैै। इनकी उम्र 58 वर्ष, शैक्षणिक योग्यता बी0ए0, बी0एड0 और इनके पास कुल भूमि लगभग 20 एकड़ है। पेशे से शिक्षक श्री तिवारी का खेती करना शौक और पैतृक व्यावसाय है। पिछले तीन वर्षो (वर्ष 2012) से कृषि विज्ञान केन्द्र, मल्हना, देवरियासे जुड़े हुए है। आज इनकी खेती शौक से आगे बढ़कर व्यावसायिक हो गई है ये नियमित कृषि विज्ञान केन्द्र आकर खेती की नवीनतम एवं वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करते रहते है। सब्जी के इतने अच्छे अनुभवी किसान हो गये है कि गाॅव ही नहीं इलाके के किसान इनके यहाॅ पर आकर इनकी खेती देखते है और इनसे जानकारी हासिल कर अपनी खेती करते है, श्री रमाशंकर तिवारी क्षेत्र के किसानों का मार्ग-दर्शक का काम कर रहे है। पिछले वर्ष खरीफ, 2012 में इन्होने केन्द्र की सलाह पर भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसीत लोबिया की काशी कंचन प्रजाति का समेकित नाशीजीव प्रबंधन कर खेती किया और मात्र 0.7 एकड़ से सभी खर्च बाटकर 40000 रूपये शुद्ध लाभ अर्जित किया। लोबिचा की कम समय में खेती से ये प्रभावित हुए और खरीफ, 2013 में 1.5 एकड़ लगाकर काशी कंचन प्रजाति से 75000 रूपये शुद्ध लाभ अर्जित किए।
साथ ही इन्होने कृषिविज्ञान केन्द्र के मार्ग-दर्शन में खरीफ, 2013 में मिर्च 0.7 एकड़ लगाकर रूपये 80000 शुद्ध लाभ, अरबी 0.5 एकड़ से 46800 रूपये शुद्ध लाभ अर्जित किए। खरीफ, 2013 में ही इनके खेत पर 0.25 एकड़ में कृषि विज्ञान केन्द्र की समेकित नाशीजीव प्रबंधन विधि से प्रदर्शन के अंतर्गत लगाई गई बैगन की काशी तरू प्रजाति लहलहा रही है और इससे अच्छी आमदनी की उम्मीद है। रबी, 2013 में इन्होने कृषि विज्ञान केन्द्र, मल्हना, देवरिया का समेकित नाशीजीव प्रबंधन विधि से टमाटर की काशी विशेष और काशी अनुपम प्रजातियाॅ अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन में 0.3 एकड़ में लगाई हुई है और फसल बिल्कुल रोग व कीट मुक्त है। रबी, 2013 में इन्होने सब्जी मटर (1.5 एकड़), फुलगोभी हाइब्रीड (0.7 एकड़), पत्तागोभी हाइब्रीड (0.25 एकड़), मिर्च नेपाली (1.0 एकड़) लगा रखी है और सभी फसल लहलहा रही है। आगे इन्हे जायद, 2014 में लोबिया की काशी कंचन प्रजाति (1.0 एकड़) और मिर्च हाइब्रीड (2.0 एकड़) लगाने की योजना है।
वैसे श्री रमाशंकर तिवारी गन्ना (चीनी मिल हेतु), धान, गेहूॅ, सरसों आदि की खेती करते है और 10 वर्ष पहले कुछ सब्जियों की खेती शुरू की थी लेकीन सब्जी की खेती करने का शौक इन्हे 4 वर्ष पहले लगा और रबी, 2010 में पत्तगोभी हाइब्रीड 1.5 बिसा में लगाकर 6500रू की बिक्री किया इसके बाद शौकियाॅ सब्जी की खेती करने लगें। कीट- बीमारियां इनकी फसलो में लगने लगी और परेशान हो गये, इन्हे कीट- बीमारीयों के प्रबंधन व खेती की नवीनतम तकनीकी, समेकित नाशीजीव प्रबन्धन की जानकारी नहीं थी। वर्ष 2012में कृषि विज्ञान केन्द्र, देवरिया के सम्पर्क में आए और इससे जुड़ गये, शुरूआत लोबिया की काशी कंचन प्रजाति खरीफ, 2012 में लगाकर किया और अच्छी शुद्ध आय प्राप्त की। आगे भविष्य में केन्द्र से जुड़कर सब्जियों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन तकनीकी अपनाने और अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है। श्री रमाशंकर तिवारी का सब्जीयों से वार्षिक आय का ब्यौरा निम्नवत् है।
मौसम व वर्ष | सब्जी का नाम | क्षेत्रफल | शुद्ध आय/शुद्ध लाभ (रू) | वार्षिक आय(रू) |
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रबी, 2010 | पत्तागोभी (हाइब्रीड) | 1.5 बिसा | 6500 | 6500 |
रबी, 2011-12 | टमाटर (हाइब्रीड) | 0.3 एकड़ | 2000 | 120000 |
पत्तागोभी (गोल्डन एकड़) | 0.7 एकड़ | 50000 | 120000 | |
पत्तागोभी (हाइब्रीड) | 0.3 एकड़ | 50000 | 120000 | |
खरीफ, 2012 | लोबिया (काशी कंचन) | 0.7 एकड | 40000 | 252000 |
अरबी | 0.7 एकड़ | 47000 | 252000 | |
रबी, 2012-13 | पत्तागोभी (हाइब्रीड) | 3.0 एकड़ | 165000 | 252000 |
खरीफ, 2013 | लोबिया (काशी कंचन) | 1.5 एकड | 75000 | 381800 |
अरबी | 0.5 एकड | 46800 | 381800 | |
मिर्च (हाइब्रीड) | 0.7 एकड़ | 60000 | 381800 | |
बैगन (काशी तरू) | 0.25 एकड़ | 40000 | 381800 | |
रबी, 2013-14 | टमाटर (काशी विश्ेष, काशी अनुपम) | 0.30 एकड़ | 30000 | 381800 |
सब्जी मटर | 1.5 एकड़ | 80000 | 381800 | |
फुलगोभी (हाइब्रीड) | 0.7 एकड़ | 20000 | 381800 | |
पत्तागोभी (हाइब्रीड) | 0.25 एकड़ | 30000 | 381800 |